Wednesday, October 18, 2006

पं. नरेन्द्र शर्मा

आह! अन्तिम रात वह,
बैठी रहीं तुम पास मेरे,
शीश कांधे पर धरे,
घन कुन्तलों से गात घेरे,
क्षीण स्वर में कहा था,
"अब कब मिलेंगे ?"

आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे ?
"कब मिलेंगे", पूछ्ता मैं, विश्व से जब विरह कातर,
"कब मिलेंगे", गूँजते प्रतिध्वनिनिनादित व्योम सागर,
"कब मिलेंगे", प्रश्न उत्तर "कब मिलेंगे"!
आज के बिछुड़े न जाने कब मिलेंगे?

No comments: