Saturday, June 14, 2025

Foes and friends

 ये तजुर्बा तेरे रक़ीबों के.. ये ही तो मेरा रक़ीब रहा.. 

तू ख़ुद को मुफ़लिस कहता रहा.. तेरा हुनर मेरे क़रीब रहा 🙏🙏

आभास

Saturday, February 01, 2025

Long Lost Thoughts

 जाने क्यूँ भूल जाता हूँ ज़िंदगी की जद्दों जहद में 

थक कर जब भी रुका हूँ, खुद ही ख़ुद को से खोया हुआ पाया है |

एक एक तिनका एक एक कतरे से जब भी किया मंजिल को मुकम्मल 

नींदे सुकून ना मिली पर बेचैन सा अगली मंजिल का सपना नज़र आया है ||

- आभास