चमकते हुए उस कपाल पर, देखी मैंने एक स्मित लकीर,
मन हर्षित हुआ जैसे, किसना को देखे कोई फ़कीर।
आभास हुआ जैसे मित्र मेरे, तुम बात खुदी से करते थे,
मुग्ध मन से जब मुझे सुनाते, अपने बचपन के चर्चे थे।
तब देखा मैंने तुमको कभी-कभी, फिर गिरते गहराई में,
जैसे "फिर" सोये थे कुछ पल तुम, अपने दुख की परछाई में।
फिर क्षितिज पर तैर तुम, सुर्य नवीन से उदित हुए,
हठ करते इस बाल-राम से जैसे, इश्वर फिर हर्षित हुए।
आशिष हैं मेरा हंसो सदा तुम, यूं जीवन आगामी में,
जैसे खेले सुर से कोई, मधुर जीवन रागिनी में।
- आभास
मन हर्षित हुआ जैसे, किसना को देखे कोई फ़कीर।
आभास हुआ जैसे मित्र मेरे, तुम बात खुदी से करते थे,
मुग्ध मन से जब मुझे सुनाते, अपने बचपन के चर्चे थे।
तब देखा मैंने तुमको कभी-कभी, फिर गिरते गहराई में,
जैसे "फिर" सोये थे कुछ पल तुम, अपने दुख की परछाई में।
फिर क्षितिज पर तैर तुम, सुर्य नवीन से उदित हुए,
हठ करते इस बाल-राम से जैसे, इश्वर फिर हर्षित हुए।
आशिष हैं मेरा हंसो सदा तुम, यूं जीवन आगामी में,
जैसे खेले सुर से कोई, मधुर जीवन रागिनी में।
- आभास
1 comment:
excellent lines dear!
Post a Comment