कहीं तो होगा किसी वसुन्धरा के आंचल से खेलता, मन मेरा किसी बादल को देखता हुआ..
पुछ्ता जनक से इस अन्जान स्रुष्टी के अनन्त रहस्य.. फिर बढ जाता ब्राह्मण बने किसी और ठौर की और..
कोई तो होगा जो उसे वापस बुला सके.. की शायद अब गौण सम्पूर्ण हो चला हैं...
पुछ्ता जनक से इस अन्जान स्रुष्टी के अनन्त रहस्य.. फिर बढ जाता ब्राह्मण बने किसी और ठौर की और..
कोई तो होगा जो उसे वापस बुला सके.. की शायद अब गौण सम्पूर्ण हो चला हैं...
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