आज देखो हम फ़िर खड़े ,
जहाँ दिवंगत स्मिरितियों का स्मारक,
और आज फिर यह खेल चले,
तू कर्ता तो मैं कर्म कारक,
सृजन कर्ता पिरोता था जब तेरे मेरे ही अनु,
मनन तेरा, मनन मेरा, संबंधो का बस यह धारक,
अलग सी कोख से तू भी हँसा, मैं भी दिखा,
और आज जल रहे अलग अलग चिता पर,
तू भी विचारक, मैं भी विचारक॥
- आभास
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