शायद तुम कांटा कोई,
शायद तुम हो कोई कंकड,
शायद तुम तमाचा कोई,
रखा वक्त ने जिसको जडकर,
शायद तुम शोर दुनिया का,
बेहरा करता कानों को,
शायद कम्पन धरती का तुम,
उजाड्ता जीवन स्थानो को.
हाँ यही सब हो तुम.
जाना प्रेम चुभन को तुमसे,
कंकड तुम वो गिरकर,
दिया जीवन जिसने झील स्थिर को,
तमाचा तुम वक्त का,
एहसास कर्तव्य का दिलाता है,
शोर हो तुम उस दुनिया का,
जहाँ गूंज उल्लास बस आता है.
बन जाओ अब शिव तुम मेरे,
अमृत मन्थन कर दो जीवन विष से,
की फिर नवीन का शोर हो,
तपती हो जहाँ धरा,
बन जाओ मेरे ब्रह्मा,
रचा दो एक स्वर्ग नया.
और मांगू फिर तुमसे,
बस एक आखिरी कम्पन,
की उजाड दो इन मकानो को,
देख कर तुम्हें फिर मैं,
शायद फिर,
जीवन का आभास पा सकूं!
~ आभास
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
:)
narayan narayan
Post a Comment