आज फिर वोही दिन है..
वो घूमने निकलना एक सर्दी की दोपहर,
रुक जाना घूमते हुए किन्ही चौराहों पर,
मन्दिर को देख तुमको मांग लेना चुपके से,
और तुम्हें देख बस मुस्करा देना..
खामोश रहना और तुमसे कहना की कुछ कहो,
और तुम्हारा कहना की आज सुनने का मन है,
बस उस गर्म सी हवा की होती थी सरसराहट,
तोड़ती हमारी चुप्पियो को..
दिखती आज फिर वो सड़क जिस पर चले है हम,
और वो तुम्हारा कहना की काश ये दिन ना बीते,
वो शाम का वक्त और रुक जाना किसी जगह,
जा कर तुम्हारे लिए एक चाय की प्याली लाना..
जाने क्यूँ आज फिर वो दिन याद आ गया,
शायद दिल फिर से तुम्हें छूना चाहता होगा,
कह रहा होगा मन से जीने को वो पल,
शायद आज फिर तुम्हारे साथ घूमना चाहता होगा..
कुछ भी तो बातें नही हुई,
पर जीं ली थी जिन्दगी,
और देखो आज फिर खड़े उन दोराहो पर,
मैं और तुम फिर बनके अजनबी..
- आभास
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