हर रात तेरा चेहरा एक ख्वाब सा दिखता है,
हर धड्कन तेरे कदमों की आहट गिनती है,
सवाल तो नही तु कि लाजवाब हो सके,
खुबसूरती तेरी फिर भी एक पहेली सी जलती है,
हो रात तु, या हो दिन का कोई पल, हो सुबह,
या हो शाम जो रफ़्ता-रफ़्ता ढलती है,
हो कुछ भी तु, इस काफ़िर का तो इतना कहना है,
तेरे आने से दिल में खुदा की लौ जलती है...
Friday, June 08, 2007
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